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सूर्य नीचस्थ हो तो क्या करें ?

कार्तिक जन्म अथवा नीचस्थ सूर्य में जन्म

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                  हर साल अक्टूबर मध्य से नवम्बर मध्य के बीच सूर्य अपनी नीच राशि तुला में रहता है ,इस दौरान जन्म होने से कार्तिक जन्म का दोष बनता है |२६-२७ अक्टूबर को अपने परम नीच बिंदु तुला के दश अंश पर सूर्य होता है जिसके आस पास कार्तिक जन्म का सर्वाधिक दुष्प्रभाव  आता है ,,,कन्या व् वृश्चिक लग्नों में यह सूर्य जीवन साथी के सुख में कमी संतानोत्पत्ति में बाधा ,पैदा होने पर भी संतान में शारीरिक या मानसिक कमी ,परिवार में विखराव ,आजीविका में अस्थायिता ,आर्थिक तरक्की -खुशहाली में बाधा आदि परिणाम दे सकता है ,यह सूर्य प्रतिष्ठा -मान सम्मान में कमी ,राजयोगों के प्रभाव में कमी ,बड़े पुत्र से दूरी ,जन्म स्थान से दुरी भी दे सकता है |तुला लग्न भी हो तो यह सूर्य व्यवसाय में हानि ,जीवन में स्थिरता का अभाव ,साझेदारों-समर्थकों-साथियों से धोखा या अपयश देता है |

                मेष लग्न में कार्तिक जन्म जीवन साथी या ससुराल से कष्ट अपमान या संबंधों में विवाद देता है ,वृष में व्यापार में असफलता ,सामाजिक मान्यता में कमी ,,मिथुन में संतानोत्पत्ति में बाधा ,प्रबंध क्षमता में कमी ,घर में अशांति ,कर्क में कुटुंब में अशांति व् विखराव ,बचत में कमी ,सिंह लग्न में संतान में शारीरिक विकार ,दुर्व्यसनों से धन हानि ,जल्दबाजी से नुक्सान ,धनु में परिवार में विवाद, पिता से विरोध ,आमदनी में बार-बार बाधा ,मकर में राज्यपक्ष से तनाव ,दीर्घकालीन रोग ,दुष्टों से भय ,कुम्भ में संतान होने में बाधा या कष्ट ,पैत्रिक सुख में कमी ,रोग ,मीन में कर्ज ,लम्बे रोग आदि दिक्कतें होती हैं |

           यदि कार्तिक जन्म हो अथवा सूर्य नीचस्थ हो तो सूर्य शांति करनी या करवानी चाहिए ,किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श कर रत्न आदि अथवा वानस्पतिक जड़ें आदि धारण करनी चाहिए |

कार्तिक जन्म अथवा नीचस्थ सूर्य में जन्म के उपाय

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    नीचस्थ सूर्य अर्थात तुला राशि में सूर्य हो अर्थात कार्तिक जन्म हो तो किसी भी संक्रांति के दिन ,रविवार को हस्त नक्षत्र के योग में ,अपने जन्म नक्षत्र में ,क्रान्ति साम्य साम्य काल में, ग्रहण के दिन या किसी भी शुभ दिन में दोपहर ढलने तक कार्तिक शान्ति का विधान करें |

       इसके लिए विधि विधान से संकल्प पूर्वक गणेश-गौरी ,नवग्रह ,कलश आदि की स्थापना करें ,मुख्या कलश के साथ चार अन्य कलश भी स्थापित करें ,मुख्या कलश पर वरुण आदि आवाहित देवताओं के पूजन करें ,पूर्व कलश पर ब्रह्मा जी ,पश्चिम पर रूद्र ,दक्षिण पर विष्णु और उत्तर कलश पर सूर्य देव का पूजन करें व् उनके मन्त्रों का जप करें ,तत्पश्चात हवन,सूर्य को अर्ध्य दें ,और अन्न-वस्त्र-फल का दान दें |इस विधि को संपन्न करवाने हेतु योग्य ब्राह्मण का सहयोग ले सकते हैं |

       ग्रह पूजा के लिए उनकी धातु की मूर्ति ,चित्र ,यन्त्र,रोली से आकार अथवा सुपारी पर उनके आह्वान का प्रयोग किया जा सकता है ,जिसे बाद में अपने पूजा स्थान पर विराजमान करा दें ,ग्रह शान्ति के लिए रत्न का निर्णय योग्य ज्योतिषी के परामर्श के बाद ही करें ,,यदि शान्ति करवा पाना समयानुसार संभव न हो तो सूर्य के मंत्र का जप ,स्तुति पाठ और यन्त्र पूजा करते रहें और समय अनुकूल होने पर शांति करवा लें |

        सूर्य गायत्री मंत्र – ॐ आदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात |

        तंत्रोक्त रवि मंत्र – ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः |

       ……………………………………………….हर-हर महादेव


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