मातृका – गण
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दुर्गा सप्तशती के अनुसार शुम्भ निशुम्भ के विनाश और देवताओ की विजय के लिये ब्रह्मा, शिव, कार्तिकेय, विष्णु, वराह, नृसिंह और इंद्र के शरीर से उनकी शक्तियाँ निकली और उन्ही का स्वरुप धारण कर भगवती चण्डिका के पास आई। जिस देवता का जैसा आकार, आभूषण, और वाहन था, उसी के अनुसार उसकी शक्ति भी वैसा ही आकार, आभूषण और वाहन लेकर असुरो का नाश करने के लिये युद्ध भूमि में पधारी। ब्रह्मा की शक्ति ब्राह्मी या ब्राह्मणी, महेश्वर या शिव की शक्ति माहेश्वरी, कार्तिकेय की शक्ति कौमारी, विष्णु की शक्ति वैष्णवी, वराह की शक्ति वाराही, नृसिंह की शक्ति नारसिंही और इंद्र की शक्ति ऐन्द्री या इन्द्राणी नाम से कही गई है। इनमे से प्रत्येक ” मातृका” नाम से प्रसिद्द है।
” वाराह- पुराण” के अनुसार अन्धकासुर को मारने के लिए जब रूद्र को क्रोध हुआ, तब उनके मुख- मण्डल से अग्नि – शिखा प्रकट हुई, जिससे “योगेश्वरी” का आविर्भाव हुआ। इन्हें ही प्रथम व् मुख्य ” मातृका” रूप में कहा गया है। फिर क्रमशः महेश्वर, विष्णु, ब्रह्मा, कार्तिकेय, इंद्र, यम और वराह के तेज से एक एक मातृका रूप प्रकट हुआ। इस प्रकार कुल 8 मातृकाएँ उत्पन्न हुई। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य, पैशुन्य और असूया – इन्हें अष्ट मातृका कहा गया है। इनमे से
1. काम — योगेश्वरी
2. क्रोध — माहेश्वरी
3. लोभ — वैष्णवी
4. मद — ब्राह्मणी
5. मोह — कौमारी
6. मात्सर्य — इन्द्राणी
7. पैशुन्य — दण्ड धारिणी
8. असूया — वाराही ।
और ” मत्स्य- पुराण” के अनुसार जब महादेव ने अन्धकासुर को मारने के लिए उसे शूल मारा, तो उससे आहत होकर उसके शरीर से जो रक्त गिरा, उससे सहस्त्रों असुर उत्पन्न होने लगे। यह देखकर असुर के रक्त को पीने के लिए महादेव ने बहुत सी मातृकाओं को उत्पन्न किया। मत्स्य पुराण में इन मातृकाओं के नाम दिए गए है।…………………………..हर हर महादेव
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