ध्यान मुद्रा और उसके लाभ
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मेडिटेशन को कैसे अधिक सफल बनायें ?ध्यान मुद्रा क्या है ?
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ध्यान करना ,ध्यान साधना ,मेडिटेशन एक जाना पहचाना नाम है |लाखों -करोड़ों लोग इस विधा का उपयोग सीधे या साधना के रूप में करते हैं |इसके कई तरीके बताये जाते हैं ,कई तकनीकियाँ और नियम होते हैं किन्तु ध्यान की शक्ति को हम कैसे बढ़ाएं यह हमें अक्सर नहीं बताया जाता |किस स्थिति में हमें अधिक एकाग्रता मिलेगी और हमारी ध्यान साधना अधिक सफल होगी यह हमको नहीं बताया जाता यानी की शरीर और हाथ पाँव की क्या स्थिति हो की हम अधिक ध्यानस्थ हो सकें |बहुत से लोग ध्यान करते हुए हाथ कहीं भी रख लेते हैं ,पैर कैसे भी कर लेते हैं ,कुछ लोग कुछ उँगलियाँ आपस में मिला हाथ घुटने पर रख लेते हैं |यह सभी ध्यान में पर्याप्त सहायक नहीं |ध्यान साधना की बेहतर सफलता के लिए एक विशेष मुद्रा होती है यानी शरीर की स्थिति |यह विधि बताती है भारत की योग परंपरा |इस स्थिति को मुद्रा कहते हैं और ध्यान के लिए बनने वाली मुद्रा को ध्यान मुद्रा कहते हैं |पहले हम बताते हैं की ध्यान मुद्रा क्या है फिर बताते हैं क्या लाभ होते हैं |
पद्मासन में बैठकर बाएं हाथ की हथेली पर दाएं हाथ की हथेली को (उल्टे हाथ पर सीधे हाथ को) हल्के से रखने से ध्यान मुद्रा बनती है| ध्यान रखें कि इस मुद्रा में सिर, गर्दन एवं रीढ़ की हड्डी सीधी रहे| आंखें और होंठ सहज से बन्द रहें| ध्यान अपने इष्टदेव के स्वरूप पर टिकाएं अथवा शरीर से समता रखते हुए कुछ देर के लिए विचार रहित अवस्था में रहने का प्रयास करें| अष्टांग योग (यम, नियम, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि) के एक अंग ‘ध्यान’ की साधना में यह मुद्रा विशेष रूप से सहायक सिद्ध हुई है|
जो व्यक्ति पद्मासन नहीं कर सकते, उन्हें ध्यान मुद्रा सुखासन या स्वस्तिक अथवा पालथी आसन में करना चाहिए| यह सहज मुद्रा है| सहज ध्यान मुद्रा को साधारण व्यक्ति अधिक लम्बे समय तक सरलता से कर सकता है| इससे ध्यान मुद्रा के लाभ भी मिल जाते हैं| ध्यान मुद्रा में यदि हथेलियां एक दूसरे पर रखने के बाद दोनों हथेलियां ज्ञान मुद्रा की स्थिति में रखी जाएं तो ध्यान मुद्रा तथा ज्ञान मुद्रा के सम्मिलित लाभ के साथ पद्मासन के लाभ भी मिल जाते हैं| साधक के लिए ध्यान मुद्रा में समय की कोई सीमा नहीं है| लेकिन सहजता के साथ पद्मासन करने की क्षमता के अनुरूप ध्यान मुद्रा का अभ्यास करना चाहिए| साधारण व्यक्ति को इसे धीरे-धीरे बढ़ाते हुए कम-से-कम २० मिनट से एक घंटे तक करना चाहिए| ध्यान मुद्रा न कर सकने की अवस्था में सहज ध्यान मुद्रा करके लाभ उठाना चाहिए||
इससे मन की चंचलता शांत होकर चित्त की एकाग्रता बढ़ती है| सात्विक विचारों की उत्पत्ति होती है और प्रभु भजन में मन लगता है| ध्यान के प्रभाव से साधक को ध्यान की उच्चतर स्थिति में पहुंचने में सहायता मिलती है| आत्म साक्षात्कार और ईश्वर के साक्षात्कार में यह मुद्रा सहायक है|उर्जा विज्ञानं की दृष्टि से देखें तो आप शायद जानते हों की आपकी हथेली के बीच उर्जा केंद्र होता है और दोनों हथेलियों की उर्जा में अंतर भी होता है |जब हम हथेलियों को आपस में एक दुसरे के उपर रखते हैं तो हमारे ऊर्जा केन्द्रों से शरीर की उर्जा संतुलित होती है जिससे हमें शान्ति की अनुभूति होती है और इससे ध्यानस्थ होने में सहायता मिलती है |
Dhyana mudra: A mudra of contemplation. The two hands are placed in the lap, right over left with palms up and thumb tips touching. This mudra is best used in quiet meditation for an incredibly calming state of mind. It is a gesture of perfect balance of thought and total relaxation……………………………………हर-हर महादेव
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