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ज्योतिष ,तंत्र ,कुण्डलिनी ,महाविद्या ,पारलौकिक शक्तियां ,उर्जा विज्ञान

तंत्र और कृत्रिम रति

. कृत्रिम रति

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         रति के ११ प्रकारों में एक कृत्रिम रति को भी परिभाषित किया गया है जो रति तो हो सकती है किन्तु यह सम्भोग नहीं होता क्योंकि सम्भोग में दो लोगों का साथ में बराबर भोग होता है इसीलिए इसका महत्त्व बहुत कम है तंत्र आदि में |कृत्रिम उपायों से की गई रति ,कृत्रिम रति है |पशुओं में सम्पूर्ण प्रवृत्ति प्रकृति प्रदत्त रूप से आज भी क्रिया शील है |उन्हें काम उद्वेग सताता है ,तो वे किसी भी विपरीत लिंगी से रति कर लेते हैं |परन्तु मनुष्य ने स्वयं को अनेक कृत्रिम ,सामाजिक एवं नैतिक नियमो में बाँध रखा है |वह न तो जीवन यापन आदि व्यापारों में इच्छानुकुल व्यवस्था कर पाने में समर्थ है न ही वह रति क्रिया को यथावत पूर्ण करने में समर्थ है |

       विश्व के अनेक समाजों में नारी-पुरुष किसी के प्रति काम भाव से आकृष्ट होने पर उससे अभिसार की प्रार्थना के सकने के लिए स्वतंत्र हैं ,किन्तु भारतीय संस्कृति में ऐसा सोचना भी घोर अनैतिक समझा जाता है |इस स्थिति में यहाँ के युवक -युवतियों के साथ घोर समस्या कड़ी हो जाती है |सामाजिक विसंगतियों एवं भौतिक प्रतिस्पर्घा के इस युग में पुरुष ३५-४० वर्ष तक स्त्री ३० वर्ष तक कुँवारी रहने लगी है |जबकि दोनों में काम भाव का प्रादुर्भाव १६ एवं १३ वर्ष में प्रारंभ हो जाता है |साथ ही वातावरण, उत्तेजक द्रश्य ,रोमांटिक कहानियां ,सहशिक्षा का उसृन्खल वातावरण ,टी वि ,सिनेमा आदि इनमे १२-१४ वर्ष में भी सब समझा देते हैं और यह उग्र काम भाव से ग्रस्त होने लगते हैं |इस स्थिति में भारतीय वर्जनाओं से इन्हें प्राकृतिक उपायों द्वारा रति की प्राप्ति संभव नहीं होती फलतः किशोर-किशोरी मन की उत्तेजना को शांत करने के लिए कृत्रिम उपायों का अवलंबन करने लगते हैं |जिन समाजों में वर्जनाएं अधिक हैं वहां कृत्रिम रति का प्रतिशत अधिक है जबकि खुले समाजों में इसका प्रतिशत कुछ कम है |

         इस प्रकार की रति एक पक्षीय होती है |इससे अनेक हानि होती है |रतिक्रिया में जो पारस्परिक ऊर्जा रति होती है उससे शारीर एवं मन को एक विशिष्ट संतुष्टि मिलती है |इस रति में स्खलन के बावजूद भी व्यक्ति असंतुष्ट ही रहता है |इसके साथ मन का अपराध बोध उसे भयभीत करके विक्षुब्ध ,खिन्न और ग्लानी से युक्त कर देता है |जो शारीरिक कमी आती है वह अलग से ,क्योकि अप्राकृतिक रगड़ से परिवर्तन विकृत कर देते हैं |लड़कियां इस ग्लानी के साथ भयभीत भी रहती हैं की कहीं शादी के बाद वे इसी कारण अपने पति की घृणा या तिरस्कार की पात्र न बन जाएँ ,कुछ मामलो में ऐसा होता भी है |शादी के बाद भी यह आदतें जल्दी नहीं छुटती |कृत्रिम रति में हाथ ,उंगली या रबड़ के उपकरणों का जो प्रयोग किया जाता है ,वह प्रकृति प्रदत्त अंगों जैसे नहीं होते |फलतः युवा होते होते लड़कों की नसों में विकृति आ जाती है ,असंतुलित दबाव और स्थान विशेष पर पड़ने वाले रगड़-दबाव के कारण लिंग में टेढ़ापन आ जाता है ,साथ की आकार और आकृति भी असंतुलित हो जाती है ,जो बाद में स्त्री की असंतुष्टि का कारण बनती है |इसके साथ ही वीर्य उत्पन्न करने वाले धातु तत्वों की कमी हो जाती है |अत्यधिक और असंयमित ,समय पूर्व हार्मोन के शोषण से वीर्य पतला और शुक्र विहीन हो जाता है |यह स्थिति भावी दाम्पत्य जीवन को नरक बना देती है |

           लड़कियों में भी कृत्रिम उपकरणों अथवा अंगुली प्रयोग के कारण योनी में व्रण ,धातु व्रण [कीड़े] ,छिलना ,रति तंतुओं की संवेदन शीलता [योनी में] कम होना ,गर्भाशय के मुख का क्षति ग्रस्त होना आदि समस्याएं उत्पन्न होती है |इसके साथ ही असामयिक और अनियमित रति से इनमे भी हारमोन का बैलेंस बिगड़ जाता है जो बड़े होने पर बहुत सी समस्याओं का कारण बनता है ,समय पूर्व शरीर फैलना ,कमर -जाँघों के दर्द ,अनियमित मासिक चक्र ,संतान सम्बन्धी समस्याएं ,रति में असंतुष्टि ,कम उम्र में रति से मन उचटना या अक्षमता आदि हो सकता है |सामान्यतया पाया जाता है की कृत्रिम उपकरणों के प्रयोग के बाद ,पुरुष संसर्ग में ऐसी युवतियों को संतुष्टि नहीं मिलती ,क्योकि उनकी संवेदनशीलता कम हो चुकी होती है |

        हमारे पास ऐसे बहुत से मामले आते रहते हैं ,जिनमे अधिकतर लड़कियों या नवविवाहिताओं के होते हैं ,बहुत से लड़के शादी के पूर्व भयभीत हुए आते हैं |कुछ पुरुष भी विवाह बाद आते हैं |इनकी एक ही आशंका होती है ,शादी के पूर्व का जीवन या ये कृत्रिम रति क्रियाएं उनके शादी शुदा जीवन का अभिशाप तो नहीं बन जायेंगी |इन समस्याओं के या आई हुई विकृतियों के उपाय तो तंत्र में हैं ,पर यह कुछ कठिन भी होते हैं जिन्हें पुरुष तो कर लेते हैं पर सामाजिक मान्यातायुक्त युवती करना नहीं चाहती और कष्ट पाती रहती है |आदतों का इलाज तो मानसिक बल से ही संभव होता है |

         तंत्र में इस रति को यद्यपि विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता किन्तु कुछ साधनाओं और पद्धतियों में इसका उल्लेख मिलता है ,जैसे कामाख्या या महाविद्याओं में कुछ स्थानों पर लिखा है प्रयत्नपूर्वक वीर्य का निस्सारण कर अमुक क्रिया की जाए अर्थात किसी भी प्रकार वीर्य निकाल वह क्रिया की जाए |कुण्डलिनी साधना अथवा उच्च साधनाओं में इसका कोई महत्त्व नहीं क्योंकि इस प्रक्रिया में ब्रह्मचर्य नष्ट होता है तथा उर्जा क्षति होती है जिससे प्राप्त सिद्धि नष्ट होता है |…………….हर हर महादेव


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