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लक्ष्मी बुलाने से नहीं आती
लक्ष्मी बुलाने से नहीं आती ==================== दीपावली की पूजा सामान्य जन में सुख –समृद्धि…
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लक्ष्मी-श्री लक्ष्मी और महालक्ष्मी
::::::::::::लक्ष्मी–लक्ष्मी और लक्ष्मी :: कौन हैं ये लक्ष्मी और महालक्ष्मी ::::::::::::: ===================================================== हिन्दू धर्म…
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कर्ण पिशाचिनी साधना [Karn Pishachini Sadhna ] – ४
कर्ण पिशाचिनी साधना [Karn Pishachini Sadhna ] ===============[[ चतुर्थ मंत्र – सात्विक पद्धति ]]…
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कर्ण पिशाचिनी साधना [Karn Pishachini Sadhna ] – ३
कर्ण पिशाचिनी साधना [Karn Pishachini Sadhna ] =============== [तृतीय मंत्र – वाम मार्ग ]…
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कर्ण पिशाचिनी साधना [Karn Pishachini Sadhna ] – २
कर्ण पिशाचिनी साधना [Karn Pishachini Sadhna ] ================[ द्वितीय मंत्र – सात्विक क्रियागत ]…
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कर्ण पिशाचिनी साधना – १
कर्ण पिशाचिनी साधना ===============[प्रथम मंत्र -अघोर क्रियागत ] कर्ण पिशाचिनी…
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कर्ण पिशाचिनी [karn Pishachini ]
कर्ण पिशाचिनी [karn Pishachini ] ===================== भारतीय तंत्र में भूत -भविष्य…
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लीलावती अप्सरा साधना [[ Lilavati Apsara Sadhna ]]
लीलावती अप्सरा साधना [[ Lilavati Apsara Sadhna ]] ======================================= अप्सराएं प्रकृति की ऊर्जा शक्तियाँ…
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तिलोत्तमा अप्सरा साधना [[Tilottama Apsara Sadhna ]]
तिलोत्तमा अप्सरा साधना [[Tilottama Apsara Sadhna ]] ========================================= प्रकृति के ऊर्जा स्तर में त्रिदेवों…
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अप्सरा साधना के नियम
अप्सरा साधना के नियम ================== अप्सराये अत्यंत सुंदर और जवान होती हैं. उनको सुंदरता…
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अप्सरा तिलोत्तमा [Tilottama ]
अप्सरा तिलोत्तमा : ============== तिलोत्तमा स्वर्ग की परम सुंदर अप्सरा थीं। पुराणों अनुसार इसकी…
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अप्सरा मेनका [ Menka ]
अप्सरा मेनका : =========== मेनका स्वर्ग की सबसे सुंदर अप्सरा थी। महान तपस्वी ऋषि…
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अप्सरा उर्वशी [ Urvashi ]
अप्सरा उर्वशी : =========== श्रीमद्भागवत के अनुसार यह उर्वशी स्वर्ग (हिमालय के उत्तर का…
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अप्सरा रम्भा [ Rambha ]
अप्सरा रम्भा : =========== रम्भा का नाम कथाओं कहानियों में विशेष सुंदरी के तौर…
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अप्सरा [ Apsara ]
:::::::::::::::::::अप्सरा :::::::::::::::::::: ========================= भारतीय संस्कृति में अप्सरा एक जाना -पहचाना नाम है ,यह नाम…
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आगम तंत्र शास्त्र -२ [Aagam Tantra-२ ]
::::::::::::::::आगम तंत्र शास्त्र :::::::::::::: [पिछले भाग का शेष ] ‘ब्रह्मयामल’ के अनुसार नि:श्वास आदि तंत्र शिव के मध्य स्रोत से उद्भूत हुए थे और ऊर्ध्व वक्ष से निकले हैं। ब्रह्मयामल के मतानुसार नयोत्तर संमोह अथवा शिरश्छेद वामस्रोत से उद्भूत हैं। जयद्रथयामल में भी है कि शिरच्छेद से नयोत्तर और महासंमोहन – ये तीन तंत्र शिव के बाम स्रोत से उद्भूत हैं। द्वैत और द्वैताद्वैत शैव आगम अति प्राचीन है, इसमें संदेह नहीं। परंतु जिस सरूप में वे मिलते हैं और मध्य युग में भी जिस प्रकार उनका वर्णन मिलता है, उससे ज्ञात होता है कि उसका यह रूप अति प्राचीन नहीं है। काल भेद से विभिन्न ऐतिहासिक परिस्थितियों के कारण ऐसा परिवर्तन हो गया है। फिर भी ऐसा माना जा सकता है कि मध्य युग में प्रचलित पंचरात्र आगम का अति प्राचीन रूप जैसा महाभारत शांति पर्व में दिखाई देता है उसी प्रकार शैवागम के विषय मे भी संभावित है। महाभारत के मोक्ष पर्व के अनुसार स्वयं श्रीकृष्ण ने द्वैत और द्वैताद्वैत शैवागम का अध्ययन उपमन्यु से किया था। ‘कामिक आगम’ में है कि सदाशिव के पंचमुखों में से पांचरात्र स्रोतों का संबंध है। इसीलिये कुल स्रोत 25 हैं। पाँच मुखों के पाँच स्रोतों के नाम हैं– 1. लौकिक, 2. वैदिक 3. आध्यात्मिक, 4. अतिमार्ग,…
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आगम तंत्र शास्त्र [Aagam Tantra ]
:::::::::::::::::::आगम तंत्र शास्त्र :::::::::::::::::: =============================== आगम ग्रंथ में साधारणतया चार पाद होते है – ज्ञान, योग, चर्या और क्रिया। इन पादों में इस समय कोई–कोई पाद लुप्त हो गया है, ऐसा प्रतीत होता है और मूल आगम भी सर्वांश में पूर्णतया उपलब्ध नहीं होता, परंतु जितना भी उपलब्ध होता है वही अत्यंत विशाल है, इसमें संदेह नहीं। प्राचीन आगमों का विभाग इस प्रकार हो सकता है: शैवागम ( संख्या में दस ), रूद्रागम ( संख्या में अष्टादश ) ये अष्टाविंशति आगम (१० + ८ = १८) ‘सिद्धांत आगम’ के रूप में विख्यात हैं। ‘भैरव आगम’ संख्या में चौंसठ सभी मूलत: शैवागम हैं। इन ग्रंथों में शाक्त आगम आंशिक रूप में मिले हुए हैं। इनमें द्वैत भाव से लेकर परम अद्वैत भाव तक की चर्चा है। शैवागम किरणागम, में लिखा है कि, विश्वसृष्टि के अनंतर परमेश्वर ने सबसे पहले महाज्ञान का संचार करने के लिये दस शिवों का प्रकट करके उनमें से प्रत्येक को उनके अविभक्त महाज्ञान का एक एक अंश प्रदान किया। इस अविभक्त महाज्ञान को ही शैवागम कहा जाता है। वेद जैसे वास्तव में एक है और अखंड महाज्ञान स्वरूप है, परंतु विभक्त होकर तीन अथवा चार रूपों में प्रकट हुआ है, उसी प्रकार मूल शिवागम भी वस्तुत: एक होने पर भी विभक्त होकर दस आगमों के रूप में प्रसिद्व हुआ है। इन समस्त आगमधाराओं में प्रत्येक की परंपरा है। दस शिवों में पहले प्रणव शिव हैं। उन्होंने साक्षात् परमेंश्वर से जिस आगम को प्राप्त किया था उसका नाम ‘कामिक’ आगम है। प्रसिद्वि है कि उसकी श्लोकसंख्या एक परार्ध थी। प्रणव शिव से त्रिकाल को और त्रिकाल से हर को क्रमश: यह आगम प्राप्त हुआ। इस कामिक आगम का नामांतर है, कामज, त्रिलोक, की जयरथकृत टीका में कही नाम मिलता है। द्वितीय शिवागम का नाम है – योग । इसकी श्लोक संख्या एक लक्ष है, ऐसी प्रसिद्वि है। इस आगम के पाँच अवांतर भेद हैं। पहले सुधा नामक शिव ने इसे प्राप्त किया था। उनसे इसका संचार भस्म में; फिर भस्म से प्रभु में हुआ।…
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मंत्र साधना करते समय सावधानियां
मंत्र साधना करते समय सावधानियां ========================= मंत्रों की शक्ति असीम है। किन्तु…
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हवन -आहुति के नियम
हवन -आहुति के नियम ================= कोई भी अनुष्ठान के पश्चात हवन करने का शास्त्रीय…
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श्री सरस्वती साधना
:::::::::::::::::::::विद्या -बुद्धि की देवी श्री सरस्वती साधना ::::::::::::::::::::: ================================================== आधुनिक समय में जीवन के…
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